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प्र॒ति॒श्रुत्का॑याऽअर्त्त॒नं घोषा॑य भ॒षमन्ता॑य बहुवा॒दिन॑मन॒न्ताय॒ मूक॒ꣳ शब्दा॑याडम्बराघा॒तं मह॑से वीणावा॒दं क्रोशा॑य तूणव॒ध्मम॑वरस्प॒राय॑ शङ्ख॒ध्मं वना॑य वन॒पम॒न्यतो॑ऽरण्याय दाव॒पम् ॥१९ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

प्र॒ति॒श्रुत्का॑या॒ इति॑ प्रति॒ऽश्रुत्का॑यै। अ॒र्त्त॒नम्। घोषा॑य। भ॒षम्। अन्ता॑य। ब॒हु॒वा॒दिन॒मिति॑ बहुऽवा॒दिन॑म्। अ॒न॒न्ताय॑। मूक॑म्। शब्दा॑य। आ॒ड॒म्ब॒रा॒घा॒तमित्या॑डम्बरऽआघा॒तम्। मह॑से। वी॒णा॒वा॒दमिति॑ वीणाऽवा॒दम्। क्रोशा॑य। तू॒ण॒व॒ध्ममिति॑ तृणव॒ऽध्मम्। अ॒व॒र॒स्प॒राय॑। अ॒व॒र॒प॒रायेति॑ अवरऽप॒राय॑। श॒ङ्ख॒ध्ममिति॑ शङ्ख॒ऽध्मम्। वना॑य। व॒न॒पमिति॑ वन॒ऽपम्। अ॒न्यतो॑रण्या॒येत्यन्यतः॑ऽअरण्याय। दा॒व॒पमिति॑ दाव॒ऽपम् ॥१९ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:30» मन्त्र:19


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे परमेश्वर वा राजन् ! आप (प्रतिश्रुत्कायै) प्रतिज्ञा करनेवाली के अर्थ (अर्त्तनम्) प्राप्ति करानेवाले को (घोषाय) घोषणे के लिए (भषम्) सब ओर से बोलनेवाले को (अन्ताय) समीप वा मर्य्यादावाले के लिए (बहुवादिनम्) बहुत बोलनेवाले को (अनन्ताय) मर्यादा रहित के लिए (मूकम्) गूँगे को (महसे) बड़े के लिए (वीणावादम्) वीणा बजानेवाले को (अवरस्पराय) नीचे के शत्रुओं के अर्थ (शङ्खध्मम्) शङ्ख बजानेवाले को और (वनाय) वन के लिए (वनपम्) जङ्गल की रक्षा करनेवाले को उत्पन्न वा प्रकट कीजिए (शब्दाय) शब्द करने को प्रवृत्त हुए (आडम्बराघातम्) हल्ला-गुल्ला करनेवाले को (क्रोशाय) कोशने को प्रवृत्त हुए (तूणवध्मम्) बाजे विशेष को बजानेवाले को (अन्यतोऽरण्याय) अन्य अर्थात् ईश्वरीय सृष्टि से जहाँ वन हों, उस देश की हानि के लिए (दावपम्) वन को जलानेवाले को दूर कीजिये ॥१९ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को चाहिए कि अपने स्त्री-पुरुष आदि के साथ पढ़ाने और संवाद करने आदि व्यवहारों को सिद्ध करें ॥१९ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(प्रतिश्रुत्कायै) प्रतिज्ञात्र्यै (अर्त्तनम्) प्रापकम् (घोषाय) (भषम्) पारिभाषकम् (अन्ताय) समीपाय ससीमाय वा (बहुवादिनम्) (अनन्ताय) निःसीमाय (मूकम्) अवाचम् (शब्दाय) प्रवृत्तम् (आडम्बराघातम्) आडम्बरस्याघातकं कोलाहलकर्त्तारम् (महसे) महते (वीणावादम्) वाद्यविशेषम् (क्रोशाय) रोदनाय प्रवृत्तम् (तूणवध्मम्) यस्तूणवं धमति तम् (अवरस्पराय) योऽवरेषां परस्तस्मै (शङ्खध्मम्) यः शङ्खान् धमति तम् (वनाय) (वनपम्) जङ्गलरक्षकम् (अन्यतोऽरण्याय) अन्यतोऽरण्यानि यस्मिन् देशे तद्विनाशाय प्रवृत्तम् (दावपम्) वनदाहकम् ॥१९ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे परमेश्वर राजन् वा ! त्वं प्रतिश्रुत्काया अर्त्तनं घोषाय भषमन्ताय बहुवादिनमनन्ताय मूकं महसे वीणावादमवरस्पराय शङ्खध्मं वनाय वनपमासुव। शब्दायाडम्बराघातं क्रोशाय तूणवध्ममन्यतोरण्याय दावपं परासुव ॥१९ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यैः स्वकीयैस्स्त्रीपुरुषादिभिरध्यापनसंवादादिव्यवहाराः साधनीयाः ॥१९ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - माणसांनी सर्व प्रकारच्या स्री-पुरुषांबरोबर संवाद करावा, तसेच राजाने बोलणारे, वीणा वाजविणारे, शंख वाजविणारे, जंगलाचे रक्षण करणारे वगैरे अनेक लोकांना प्रकाशात आणावे.